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मनोहर जोशी

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अध्यक्ष के पद का हमारे संसदीय लोकतंत्र में एक अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। अध्यक्ष के पद के बारे में यह कहा गया है कि जबकि संसद सदस्य व्यक्तिगत संसदीय क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं, अध्यक्ष सभा के संपूर्ण प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। वह सभा की गरिमा और शक्ति का प्रतीक है और वह न केवल सभा के बल्कि प्रत्येक सदस्य के भी अधिकारों और विशेषाधिकारों की रक्षा करता है। अपने संसदीय इतिहास में भारत की संसद उन प्रतिष्ठित अध्यक्षों की शृंखला की साक्षी रही है, जिन्होंने हमारी महान संसदीय परम्पराओं को सदैव कायम रखा है और भावी पीढ़ी के लिए एक महान विरासत छोड़ी है। श्री मनोहर जोशी पीठासीन अधिकारियों की इस उत्कृष्ट पंक्ति में तब शामिल हुए जब उन्हें 10 मई, 2002 को अध्यक्ष के गरिमापूर्ण पद के लिए सर्वसम्मति से निर्वाचित किया गया। वे 4 जून, 2004 तक पद पर बने रहे।

2 दिसंबर, 1937 को महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में नान्दवी में जन्मे, श्री जोशी ने मुंबई में शिक्षा पाई। वे विधि में स्नातक हैं और कला में स्नातकोत्तर हैं तथा मराठी, हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत भाषा में प्रवीण हैं। श्री जोशी का विवाह श्रीमती अनाघा मनोहर जोशी से हुआ है। उनके एक पुत्र और दो पुत्रियां हैं।

राजनैतिक जीवन
श्री जोशी ने अपना पेशा एक अध्यापक के रूप में आरंभ किया और वर्ष 1967 में राजनैतिक क्षेत्र में पदार्पण किया। शिव सेना के साथ उनका संबंध चार दशकों पुराना है। मुंबई शहर और इसके लोगों का कल्याण सदैव ही श्री जोशी की स्थाई चिंता का विषय रहा है। वे वर्ष 1968-70 के दौरान मुंबई के निगम पार्षद रहे और 1970 में स्थाई समिति (नगर निगम) के सभापति रहे। उन्होंने वर्ष 1976-77 के दौरान मुंबई के मेयर पद को सुशोभित किया। वे कुछ समय तक अखिल भारतीय मेयर परिषद् के चेयरमैन भी रहे। मुंबई शहर के साथ उनके घनिष्ठ संबंध और विभिन्न विकासात्मक मुद्दों पर उनकी पकड़ ने उनके राज्य विधानमंडल का सदस्य बनने के पश्चात् आगामी वर्षों में मुंबई के हित का प्रबल रूप से समर्थन करने में उनकी सहायता की।

विधायी और संसदीय जीवन
श्री मनोहर जोशी का विधायी और संसदीय जीवन 1972 में प्रारंभ हुआ, जब वे महाराष्ट्र विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए। विधान परिषद् में तीन बार कार्यकाल पूरा करने के पश्चात्, वर्ष 1990 में श्री जोशी महाराष्ट्र विधान सभा के लिए निर्वाचित हुए। वे वर्ष 1995-99 के दौरान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे। उनकी तीक्ष्ण राजनैतिक दूरदर्शिता, नेतृत्व के गुण और प्रशासनिक क्षमताओं ने उन्हें कुशलता के साथ राज्य का शासन चलाने में समर्थ बनाया। पूर्व में, वर्ष 1990-91 के दौरान वे राज्य विधान सभा में विपक्ष के नेता भी रहे। श्री जोशी अपने बेबाक और स्पष्टवादी विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं और प्रबल रूप से विश्वास करते हैं कि एक संरचनात्मक, उत्तरदायी और स्वस्थ विपक्ष लोकतांत्रिक राज व्यवस्था को मजबूत बनाने में व्यापक रूप से योगदान करता है। वे यह भी विश्वास करते हैं कि लोकतंत्र केवल तभी समृद्ध हो सकता है, जब विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच सहर्ष सहयोग हो। इस दृढ़ धारणा को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने देश में एक राष्ट्रीय विपक्ष नेता संघ की शुरूआत की।

वर्ष 1999 के आम चुनावों में श्री जोशी ने मुंबई उत्तर-मध्य लोक सभा संसदीय क्षेत्र से शिव सेना की टिकट पर चुनाव लड़ा और तेरहवीं लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए। बाद में, उन्हें केन्द्र सरकार में शामिल किया गया और उन्होंने भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम मंत्रालय का महत्वपूर्ण पदभार संभाला। केन्द्रीय मंत्री की बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभाने में महाराष्ट्र राज्य में विभिन्न पदों पर उनके कार्य का समृद्ध अनुभव उनके काम आया। केन्द्रीय मंत्री के रूप में अनेक महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेकर उन्होंने भारी उद्योग और सार्वजनिक उपक्रम क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मनोहर जोशी, अध्यक्ष
एक हेलिकाप्टर दुर्घटना में तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष, श्री जी.एम.सी. बालायोगी की दुखद मृत्यु के पश्चात्, अध्यक्ष का पद कुछ समय तक रिक्त पड़ा रहा और उपाध्यक्ष श्री पी.एम. सईद ने अध्यक्ष के कर्त्तव्यों का निर्वाह किया। 10 मई, 2002 को प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लोक सभा के नए अध्यक्ष के रूप में श्री मनोहर जोशी के निर्वाचन की मांग करते हुए स्वयं एक प्रस्ताव पेश किया; गृह मंत्री, श्री एल.के. आडवाणी ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया। जब यह प्रस्ताव विचार और मतदान के लिए सभा के समक्ष प्रस्तुत किया गया, तो सभा ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया और श्री जोशी सर्वसम्मति से लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए।

श्री जोशी को अध्यक्ष के इस सम्मानित पद पर निर्वाचन के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता, उपाध्यक्ष और विभिन्न दलों और समूहों के नेताओं द्वारा हार्दिक बधाई दी गई। श्री जोशी को अध्यक्ष के पद पर उनके निर्वाचन के लिए बधाई देते हुए, उपाध्यक्ष श्री पी.एम. सईद ने कहा कि हालांकि श्री जोशी संसद के लिए नए हैं, किंतु वे संसदीय संस्थाओं और संसदीय प्रक्रियाओं के लिए नए नहीं हैं। विभिन्न पदों पर बने रहते हुए महाराष्ट्र विधानमंडल में उनका लंबा कार्यकाल और समृद्ध अनुभव सभा को सुचारू रूप से चलाने में उनका मार्गनिर्देशन करेगा।

अध्यक्ष के पद के लिए निर्विरोध निर्वाचित होने पर श्री जोशी को बधाई देते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि श्री जोशी ने एक ऐसा पद धारण किया है, जिसके साथ महान जिम्मेदारी और दायित्व जुड़े हैं। उनके समृद्ध संसदीय और सार्वजनिक जीवन पर टिप्पणी करते हुए, प्रधानमंत्री ने कहा कि श्री जोशी ने अपने जीवन की शुरूआत एक जमीनी कार्यकर्ता के रूप में की और लोक सभा में अपने निर्वाचन से पहले अनेक पदों पर कार्य किया। उन्होंने विश्वास जताया कि श्री जोशी का सार्वजनिक जीवन में गत कई वर्षों का अनुभव सभा के कार्य का सुचारू रूप से और संविधान में यथापरिकल्पित गरिमापूर्ण तरीके से संचालन करने में उनका मार्गनिर्देशन करेगा।

नव निर्वाचित अध्यक्ष को अपनी मुबारकबाद पेश करते हुए, विपक्ष की नेता, श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा कि उच्चतम पद पर अपने निर्वाचन के साथ श्री जोशी के ऊपर हमारी संसद की चिरसम्मानित परम्पराओं को कायम रखने की महान जिम्मेदारी आ गई है। उन्होंने विश्वास जताया कि विविध क्षेत्रों में श्री जोशी का सभा के कार्य का अनुभव अपने पूर्ववर्ती अध्यक्षों के समान ही सुचारू रूप से और विवेकपूर्ण तरीके से संचालन करने में उनका मार्गनिर्देशन करेगा।

सी.पी.आई. (एम) नेता श्री सोमनाथ चटर्जी ने श्री जोशी के निर्वाचन पर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा, "हमें बहुत ही खुशी और गर्व है कि इस सभा की अध्यक्षता करने के लिए हमारे बीच एक शिक्षाविद् मौजूद हैं।"

उन्हें मिली बधाइयों के उत्तर में, श्री जोशी ने कहाः

मैं अध्यक्ष के इस उच्च संवैधानिक पद पर मुझे निर्वाचित करने के लिए आप सभी का हार्दिक धन्यवाद करता हूँ। मुझे एक महान जिम्मेदारी सौंपी गई है और यह तथ्य कि मैं इस सभा में सर्वसम्मति से चुना गया हूँ, इस जिम्मेदारी को वास्तव में कठिन बनाता है।............. मैं व्यक्तिगत रूप से इसे एक महान सम्मान के रूप में देखता हूँ कि सभा का पहली बार सदस्य होने के बावजूद मुझे ही चुना गया है। मैं इस जिम्मेदारी को विनम्रता से स्वीकार करता हूँ और यह वचन देता हूँ कि मैं अपने कर्त्तव्यों का निष्पक्षता के साथ निर्वाह करके उस विश्वास को बनाए रखूंगा, जो आपने मुझ पर जताया है।

विधायी निकायों के साथ दीर्घकाल से अपनी संबद्धता का स्मरण करते हुए श्री जोशी ने कहा कि:
……मैं संसदीय संस्कृति के लिए नया नहीं हूँ। महाराष्ट्र में, मै विपक्ष के नेता सहित विधानमंडल में विभिन्न पदों पर लंबे समय तक रहा हूँ। जी.वी. मावलंकर से लेकर जी.एम.सी. बालायोगी जैसे मेरे पूर्वाधिकारियों द्वारा स्थापित उच्च परम्पराएं तथा महाराष्ट्र विधानमंडल में मेरा लंबा अनुभव इस सभा की परम्पराओं तथा इस कार्यालय की गरिमा को बनाए रखने में मेरा मार्गदर्शन करेंगे। अध्यक्ष प्रक्रिया लागू करते समय सभा के प्राधिकार का प्रतिनिधित्व करता है और सदस्यों की चिंताओं को दूर करते हुए वह सभा का प्रथम सेवक होता है। मेरा दृष्टिकोण सख्त न होकर मित्रतापूर्ण तथा समझाने वाला होगा। अतः मैं सदस्यों के लिए सदा उपलब्ध रहूंगा। सभा तथा इसके माननीय सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों की रक्षा करने का मैं लगातार प्रयास करूंगा।

सार्वजनिक जीवन में लगभग चार दशकों के समृद्ध और विविध अनुभव के साथ श्री जोशी एक ऐसे विलक्षण पीठासीन अधिकारी रहे, जिन्होंने कार्यालय की गरिमा बनाए रखी तथा सुचारू, व्यवस्थित और तटस्थ रूप से सभा की कार्यवाही का संचालन किया। उन्होंने संसद की प्रतिष्ठा तथा गरिमा बढ़ाने के लिए कार्यवाही चलाने में सभा के सभी वर्गों को अपने साथ रखने का पूरा प्रयास किया।

श्री जोशी सभा में अनुशासन तथा शिष्टाचार बनाए रखने का प्रयास करते रहे। वह संभावित सर्वश्रेष्ठ तरीके से सभा की कार्यवाही चलाने में सर्वसम्मति बनाने के लिए विभिन्न दलों तथा समूहों के नेताओं से समय-समय पर भेंट करते रहे। प्रत्येक सत्र की पूर्व संध्या पर आयोजित होने वाली नियमित बैठकों के अतिरिक्त विशेष अवसरों पर उन आकस्मिक परिस्थितियों में सभी दलों तथा समूहों का सहयोग लेने का अवसर कभी नहीं चूके, जिनके कारण सभा की कार्यवाही पर प्रभाव पड़ सकता था।

श्री जोशी ने संसदीय सुधारों के प्रति एक अनूठा दृष्टिकोण अपनाया। उनका कहना था कि बार-बार विवश होकर किए जाने वाले स्थगनों से सभा का बहुमूल्य समय बेकार जाता है और इसकी गरिमा को ठेस पहुंचती है। उन्होंने सभा में मौखिक उतरों के लिए और अधिक तारांकित प्रश्नों को लेने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने प्रश्न काल के दौरान सदस्यों को राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय महत्व के केवल आकस्मिक मुद्दे उठाने की अनुमति देकर इसे और उपयोगी बनाया। उन्होंने बल दिया कि सदस्यों द्वारा अपने निर्वाचन क्षेत्रों से संबंधित मामले नियम 377 के अंतर्गत उठाए जा सकते हैं ताकि शून्य काल का और सकारात्मक तथा अर्थपूर्ण इस्तेमाल किया जा सके।

श्री जोशी ने संपूर्ण समिति प्रणाली की प्रभावशीलता को बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया। इसी संदर्भ में उन्होंने नई दिल्ली में नवम्बर तथा दिसंबर, 2002 में क्रमशः संसद तथा राज्य विधायिकाओं की याचिका समितियों के अध्यक्षों के सम्मेलन तथा संसद और राज्य विधायिकाओं की प्राक्कलन समितियों के अध्यक्षों के सम्मेलन का आयोजन किया। इसके अतिरिक्त बंगलौर और मुंबई में जून 2002 तथा फरवरी 2003 में श्री जोशी की अध्यक्षता में भारत में विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारियों के दो सम्मेलनों का भी आयोजन किया गया, जहां महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक मामलों तथा अन्य संबंधित मुद्दों पर विचार-विमर्श किया गया। श्री जोशी के कुशल मार्गदर्शन में एक और महत्वपूर्ण कार्यक्रम, भारतीय संसद की स्वर्ण जयंती के अवसर पर अंतर्राष्ट्रीय संसदीय सम्मेलन आयोजित किया गया।

श्री जोशी ने संसद सदस्यों को अधिक सुविधाएं आदि प्रदान करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि वे जन प्रतिनिधियों के रूप में प्रभावी तथा अर्थपूर्ण भूमिका निभा सकें। उन्होंने सचिवालय की सेवाओं के कंप्यूटरीकरण तथा आधुनिकीकरण पर भी बल दिया। सदस्यों को अब पॉम-टॉप कंप्यूटर प्रदान किए जा रहे हैं। इंटरनेट पर संसद के होम पेज पर लोक सभा की कार्यवाही का लाइव ऑडियो भी उपलब्ध कराया गया है।

मनोहर जोशी, एक व्यक्ति
श्री मनोहर जोशी का बहुआयामी व्यक्तित्व है, उन्होंने सदा राष्ट्रीय विकास के विभिन्न पक्षों पर ध्यान दिया तथा श्रम, कृषि, औद्योगिक विकास, व्यवसाय, व्यापार, आवास, पर्यावरण, रोजगार, शिक्षा से संबंधित विभिन्न मुद्दों तथा मराठी भाषा, साहित्य और संस्कृति को बढ़ावा देने का कार्य किया। लंबे समय के एक सफल प्रतिष्ठित व्यवसायी के रूप में श्री जोशी कई प्रतिष्ठानों के अध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक, स्वामी, भागीदार रहे। वह औद्योगिक तथा कृषि क्षेत्रों को समान महत्व देने में विश्वास रखते हैं और इसीलिए उन्होंने दोनों की प्रगति के लिए कड़ा परिश्रम किया। उन्होंने जागातिक मराठी चैम्बर ऑफ कॉमर्स एण्ड इंडस्ट्री की स्थापना की। अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान उन्होंने राज्य में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के लिए "एडवान्टेज महाराष्ट्र काफ्रेंस" का आयोजन किया; किसानों के लिए "एग्रो एडवान्टेज महाराष्ट्र" नामक कार्यक्रम चलाया तथा कृषि के क्षेत्र में उन्नत प्रौद्योगिकी के बारे में जानकारी प्रदर्शित करने वाली एक प्रदर्शनी का भी आयोजन किया। अपने मुख्यमंत्री काल के दौरान उन्होंने मुंबई में कई फ्लाई ओवरों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, उन्होंने मुंबई-पुणे एक्सप्रैसवे परियोजना, कृष्णा घाटी सिंचाई परियोजना तथा "टैंकर-मुक्त महाराष्ट्र योजना" जैसी योजनाओं की संकल्पना की और उन्हें आरम्भ किया।

एक शिक्षाविद् के रूप में श्री जोशी ने शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कोहिनूर तकनीकी संस्थान की स्थापना के प्रेरणास्रोत वही थे, यह संस्थान युवाओं को तकनीकी शिक्षा प्रदान करता है ताकि वे स्वःरोजगार पा सकें। वह मुंबई विश्वविद्यालय सीनेट तथा कार्यकारी परिषद् के सदस्य भी रहे। जब वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने नैतिक शिक्षा तथा मूल्य आधारित शिक्षा के महत्व पर बल दिया। इस सराहनीय प्रयास के लिए वह अपने प्रशंसकों के बीच "सर" नाम से जाने जाते हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने महिलाओं के लिए कामधेनू नीति, बुजुर्गों के लिए मातोश्री वृद्धाश्रम योजना आरम्भ की तथा युवाओं के लिए सैनिक स्कूल खोले।

सभी अच्छे कार्यों की सतत इच्छा रखने वाले व्यक्ति के रूप में उन्होंने स्वच्छ मुंबई-हरित मुंबई के विचार की संकल्पना की और वह हरित आंदोलन से सक्रिय रूप से जुड़े रहे। उन्होंने मराठी में "स्वच्छ मुंबई; हरित मुंबई" नामक पुस्तक लिखी, जोकि पर्यावरण संबंधी समस्याओं तथा स्वच्छ मुंबई आंदोलन पर केन्द्रित थी। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान संस्कृति तथा साहित्य के क्षेत्र में अपनी सक्रिय भागीदारी के तहत उन्होंने मुंबई में कला अकादमी की स्थापना की; महाराष्ट्र भूषण पुरस्कार की संस्थापना की तथा शिवाजी पार्क, मुंबई में गौरवपूर्ण अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन आयोजित किया।

श्री जोशी की विशेषज्ञता और राजनीतिक सूझ-बूझ का कई बार विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लाभ उठाया गया। शांति और सहयोग के कट्टर समर्थक के रूप में उन्होंने अंतर-संसदीय सहयोग को बढ़ावा देने के महत्व को उजागर करने का कोई अवसर नहीं गंवाया। लोक सभा अध्यक्ष के रूप में उन्होंने, जिनेवा में अंतर-संसदीय परिषद के विशेष सत्र, ढाका में राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन तथा चीन, क्रोएशिया, ईरान, पनामा, पोलैंड, रूस और जाम्बिया में भारतीय संसदीय शिष्टमंडलों का नेतृत्व किया। इस अवधि के दौरान मेक्सिको, सूरीनाम, कनाडा, तुर्की, ग्रीस, लाओ पी डी आर, चेक गणराज्य, उक्रेन और इंडोनेशिया आदि से संसदीय शिष्टमंडल हमारी संसद आए और लोक सभा अध्यक्ष श्री जोशी तथा संसद सदस्यों के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया।

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